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Wednesday, 30 May 2018

प्रेम संगीत


जबसे साँसों ने
तुम्हारी गंध पहचानानी शुरु की है
तुम्हारी खुशबू
हर पल महसूस करती हूँ
हवा की तरह,
ख़ामोश आसमां पर
बादलों से बनाती हूँ चेहरा तुम्हारा
और घनविहीन नभ पर
काढ़ती हूँ तुम्हारी स्मृतियों के बेलबूटे
सूरज की लाल,पीली,
गुलाबी और सुनहरी किरणों के धागों से,
 जंगली फूलों पर मँडराती
 सफेल तितलियों सी बेचैन 
स्मृतियों के पराग चुनती हूँ,
 पेड़ो से गिरती हुई पत्तियों से
 चिड़ियों के कलरव में
 नदी के जल की खिलखिलाहट में
 बस तुम्हारी बातें ही सुनती हूँ
 अनगिनत पहचाने चेहरों की भीड़ में
 तन्हा मैं 
 हँसती, मुस्कुराती,बतियाती यंत्रचालित,
 दुनिया की भीड़ में अजनबी
 बस तुम्हें ही सोचती हूँ
 शाम की उदासियों में
 तारों की मद्धिम टिमटिमाहट में
 रजत कटोरे से टपकती
 चाँदी की डोरियों में
बाँधकर सारा प्रेम
 लटका देती हूँ मन के झरोखे से
 पवनघंटियों की तरह
 जिसकी मधुर रुनझुन 
 विस्मृत कर जीवन की सारी कड़वाहट
खुरदरे पलों की गाँठों में
घोलती रहे 
सुरीला प्रेमिल संगीत।

 ---श्वेता सिन्हा




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