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Thursday, 3 January 2019

हर क्षण से.....


नवतिथि का स्वागत सहर्ष
नव आस ले आया है वर्ष
सबक लेकर विगत से फिर
पग की हर बाधा से लड़कर 
जीवन में सुख संचार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो

प्रकृति का नियम परिवर्तन 
काल-चक्र  जीवन विवर्तन
अवश्यसंभावी उत्थान पतन
समय सरिता में भीगकर
सूखे स्वप्नों में हो प्रस्फुटन
धैर्य के मोती पिरो के दर्द में
जीवन का तुम श्रृंगार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो

हृदय अपमान भूल,मान नहीं
चबा जा बीज दंश, आन नहीं
बिकता बेमोल भूख,धान नहीं 
कुछ नहीं चाहूँ मन मेरे संत हो
आगत दिवस सारे दुखों का अंत हो
अलक्षित क्षण यह आस कर 
पल-पल यहाँ त्योहार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो

समय के खेल में मानव विवश है
कुछ नहीं मेरा यहाँ क्यों हवस है?
नियति पर जोर किसका वश है?
जो किया संचित वो साथी कर्म है
उलझी पहेली कौन समझा मर्म है
माया जगत के तुम अतिथि
 इस सत्य को स्वीकार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो

-श्वेता सिन्हा

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...