Tuesday, 28 March 2017

ढलती शाम

बस थोड़ी देर और ये नज़ारा रहेगा
कुछ पल और धूप का किनारा रहेगा

हो जाएँगे आकाश के कोर सुनहरे लाल
परिंदों की खामोशी शाम का इशारा रहेगा

ढले सूरज की परछाई में चिराग रौशन होगे
दिनभर के इंतज़ार का हिसाब सारा रहेगा

मुट्ठियों में बंद कुछ ख्वाब थके से लौटेगे
शज़र की ओट लिये एक चाँद आवारा रहेगा

अँधेरों की वादियों में तन्हाईयाँ महकती है
सितारों की गाँव में चेहरा बस तुम्हारा रहेगा


         #श्वेता🍁



10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 29 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. कितनी अच्छी तरह से आपने शाम और तड़प का उल्लेख किया है ।

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  3. आपका बहुत बहुत आभार दिग्विजय जी🙏

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  4. आपका आभार बहुत शुक्रिया रचना की सराहना के लिए PK ji🍁

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  5. मुट्ठियों में बंद कुछ ख्वाब थके से लौटेगे
    शज़र की ओट लिये एक चाँद आवारा रहेगा

    बहुत ख़ूब !सुंदर रचना

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  6. खूब सारा आभार ध्रुव जी। उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया आपका।🍁

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  7. ब्लाग समर्थक बटन जोड़ें । डैशबोर्ड --> लेआउट-> गैजेट जोड़ें->अधिक गैजेट--> समर्थक
    सुन्दर रचना।

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    1. आभार सुशील जी खूब सारा आपके सुझाव पर जरूर ध्यान देगे कृपया अपना मार्ग दर्शन बनाये रखे।

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  8. आभार आपका सावन जी पोस्ट पर आने के लिए धन्यवाद।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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