Thursday, 30 March 2017

रिश्ता अन्जाना हो गया

तुमसे बिछड़े तो इक ज़माना हो गया,
जख्म दिल का कुछ   पुराना हो गया।

टीसती है रह रहकर  यादें बेमुरव्वत,
तन्हाई का खंज़र कातिलाना हो गया।

नमी पलकों की पूछती है दरोदिवारों से,
हर आहट से क्यूँ रिश्ता अन्जाना हो गया।

लहर मोहब्बत की नहीं उठती है दरिया में,
अब साहिल ही समन्दर से बेगाना हो गया।

रोज ही टूटकर बिखरते है फूल सेहरा में,
बहारों का न आना तो इक बहाना हो गया।

    #श्वेता🍁

13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 31 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत बहुत आभार यशोदाजी🙏

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  3. Replies
    1. जी आभार बहुत सारा आपका🙏

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    2. जी आभार बहुत सारा आपका🙏

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    1. आभार सुशील जी आपके बहुमूल्य सुझावों के लिएधन्यवाद आपका।🙏

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  5. बहुत सुन्दर ग़ज़ल

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    1. जी शुक्रिया आपका

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  6. बहुत ही सुन्दर...।
    लाजवाब..

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    1. आभार सुधा जी आपका हृदय से🍁

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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