तुमसे बिछड़े तो इक ज़माना हो गया,
जख्म दिल का कुछ पुराना हो गया।
टीसती है रह रहकर यादें बेमुरव्वत,
तन्हाई का खंज़र कातिलाना हो गया।
नमी पलकों की पूछती है दरोदिवारों से,
हर आहट से क्यूँ रिश्ता अन्जाना हो गया।
लहर मोहब्बत की नहीं उठती है दरिया में,
अब साहिल ही समन्दर से बेगाना हो गया।
रोज ही टूटकर बिखरते है फूल सेहरा में,
बहारों का न आना तो इक बहाना हो गया।
#श्वेता🍁
जख्म दिल का कुछ पुराना हो गया।
टीसती है रह रहकर यादें बेमुरव्वत,
तन्हाई का खंज़र कातिलाना हो गया।
नमी पलकों की पूछती है दरोदिवारों से,
हर आहट से क्यूँ रिश्ता अन्जाना हो गया।
लहर मोहब्बत की नहीं उठती है दरिया में,
अब साहिल ही समन्दर से बेगाना हो गया।
रोज ही टूटकर बिखरते है फूल सेहरा में,
बहारों का न आना तो इक बहाना हो गया।
#श्वेता🍁
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 31 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदाजी🙏
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteजी आभार बहुत सारा आपका🙏
Deleteजी आभार बहुत सारा आपका🙏
Deleteसुन्दर।
ReplyDeleteआभार सुशील जी आपके बहुमूल्य सुझावों के लिएधन्यवाद आपका।🙏
Deleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteजी शुक्रिया आपका
Deleteबहुत ही सुन्दर...।
ReplyDeleteलाजवाब..
आभार सुधा जी आपका हृदय से🍁
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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