दिमाग़ निवाले
गिन सकता है,
भात के दानों से
मसल-मसलकर
खर-कंकड़
बीन सकता है,
पर... भूख का
दिल और दिमाग
रोटी होती है
भात की बाट
जोहती आँतों को
ताजा है कि बासी
मुँह में जाते निवाले
स्पेशल हैं
कि राजसी
फ़र्क नहीं पड़ता।
भूख की भयावहता
रोटी की गंध,
भात के दाने,
बेबस चेहरे,
सिसकते बच्चे,
बुझे चूल्हे,
ढनमनाते बर्तन,
निर्धनों के
सिकुड़े पेट की
सिलवटें गिनकर
क़लम की नोंक से,
टी.वी पर
अख़बार में
नेता हो या अभिनेता
टी.वी पर
अख़बार में
नेता हो या अभिनेता
भूख के एहसास को
चित्रित कर
रचनात्मक कृतियों में
बदलकर
वाह-वाही,
तालियाँ और ईनाम
पाकर गदगद
संवेदनशील हृदय
उस भूख को
मिटाने का उद्योग
करने में क्यों स्वयं को
सदैव असमर्थ है पाता ?
किसी की भूख परोसना
भूख मिटाने से
ज्यादा आसान है
शायद...!!
#श्वेता