हिंदुस्तान के मज़हबी बाशिंदा हैं
लाशों पर हाय! हृदयहीन राजनीति
कौन सुने मज़लूमों की आपबीती?
लाशों पर हाय! हृदयहीन राजनीति
कौन सुने मज़लूमों की आपबीती?
वाक् वीर करते औपचारिक निंदा है
पर,ज़रा भी, हम नहीं शर्मिंदा हैं!
गोरखपुर,कोटा,लखनऊ या दिल्ली
खेल सियासती रोज उड़ाते खिल्ली
मक़्तल पर महत्वकांक्षा की चढ़ते
दाँव-पेंच के दावानल में जल मरते
चतुर बहेलिये फाँसते मासूम परिंदा है
पर ज़रा भी, हम नहीं शर्मिंदा हैं!
लगाकर नाखून पर नीला निशान
लगाकर नाखून पर नीला निशान
गर्वित हो सेल्फी खींच,दिखाते शान
ओछे,घटिया जन-प्रतिनिधि चुनते
रीढ़विहीन धागों से भविष्य बुनते
समरसता पी जाता क्रूर दरिंदा है
पर ज़रा भी ,हम नहीं शर्मिंदा हैं !
आज उनकी, कल हमारी बारी होगी
बचोगे कैसे जब तलवार दोधारी होगी?
मौत महज समाचार नहीं हो सकती
ढ़ोग मानवता की बहंगी नहीं ढो सकती
लाचारों को नोंचता स्वार्थी कारिंदा है
पर, ज़रा भी, हम नहीं शर्मिंदा हैं!
लचर व्यवस्थाओं की ढेर पर बैठ
जाने हम किसे लगाते रहते हैं टेर
अपना सामर्थ्य सौंपकर निश्चिंत
इतिश्री कर्तव्य नहीं होते कदाचित्
चुप हैं सच जानकर कि वे रिंदा है
पर,ज़रा भी,हम नहीं शर्मिंदा हैं!
लचर व्यवस्थाओं की ढेर पर बैठ
जाने हम किसे लगाते रहते हैं टेर
अपना सामर्थ्य सौंपकर निश्चिंत
इतिश्री कर्तव्य नहीं होते कदाचित्
चुप हैं सच जानकर कि वे रिंदा है
पर,ज़रा भी,हम नहीं शर्मिंदा हैं!
#श्वेता सिन्हा
५/१/२०२०
५/१/२०२०