प्रेम कहानियाँ पढ़ते हुए
वह स्वयं ही
कहानियों का
एक पात्र बन जाती है
क्योंकि
प्रेम की अलौकिक अनुभूतियां
महसूसना पसंद है उसे
मन के समुंदर पर
नमक की स्याही से
लिखकर प्रेम
सीपियों में बंदकर
भावनाओं की लहरों के बीच
छोड़ देती अक्सर
और हो जाती है
स्वतंत्र
बहने के लिए
प्रेम पात्रों के
भावुक अभिनय में भीगी वह
सोचने लगती है
राम जैसा कोई
मायावी हिरण के पीछे भागेगा
सिर्फ़ उसके हठ के लिए
फिर उसके वियोग में
आँसुओं की नदी में तैरता हुआ
संसार के हर रावण से बचाकर
अपने हृदय के सिंहासन में
पुनः स्थापित करेगा
वह यह भी
कल्पना करती कि कोई
शिव की तरह
सिर्फ उसी से करेगा प्रेम
और मुझे
स्थापित कर देगा
पार्वती की तरह
प्रेम कहानियों की
मदमस्त कल्पनाओं में डूबी
हवाओं से बात करती है
पक्षियों के साथ उड़ती है
मौसम को डाकिया बनाकर
भेजती है
प्रेम की महकती चिट्ठियाँ
अपने सुखद सपनों की
चकाचौंध में
वह भूल जाती है
दुष्यंत के प्रेम में भटकती
गर्भिणी शंकुतला की पीड़ा
दाँव पर लगी
भरी सभा में अपमान झेलती
द्रौपदी की व्यथा
वह यह भी भूल जाती है
कि,प्रेम की परिभाषा में बंधी
राधा,मीरा ,यशोधरा
और उर्मिला
अपनी उपस्थिति का
अहसास तो कराती रहीं
पर उपेक्षिति ही रही
प्रेम कहानियों के
सभी रेखांकित पात्रों का
जीवंत अभिनय करके भी
जाने क्यों
वह अधूरी ही रही
नहीं मिला उसे
मनचाहे पुरूष में
मनचाहा प्रेमी
शायद वह समझ नहीं पायी
कि,वास्तविकता में
प्रेम कहानियों के रंगीन चित्रों में लिपटे पात्रों को
छू लेने की जिद से
उत्पन्न इच्छाएं
भाप बनकर उड़ जाती हैं
और
बदरंग होने लगते हैं
प्रेम के रंग
#श्वेता सिन्हा