हर अभिव्यक्ति के बाद
बची हुई अभिव्यक्ति में
भावों की गहराई में छुपी
अव्यक्तता की अनुभूति
सदैव जताती है
अभिव्यक्ति के
अधूरेपन के समुच्चय को
अपूर्ण शब्दों के समास को
जिन्हें पूर्ण करने की चेष्टा में
अक्सर ख़ाली पन्ने पर
फडफड़़ाती हैं बेचैनियाँ...।
बेचैनियों को
छुपाने के लिए
कविताओं का आसामान चुना
सोचती रही
शब्दों से नज़दीकियाँ बढ़ाकर
फैलाकर अपने भावों के पंख
सुकून पा रही हूँ...
पर जाने क्यों
उम्र के साथ
बढ़ती ही जा रही हैं
बेचैनियाँ।
पसीजे मन की धुन पर
चटखती उंगलियाँ,
कल्पनाओं के
स्क्रीन ऑन-ऑफ
स्क्रॉल करती...,
एक मनचाहा
संदेश देखने के लिए
विकल आँखें,
नींद का स्वांग भरती
करवटें,
कोलाहलों से तटस्थ
बस एक परिचित आहट
टोहते कान,
सचमुच...
भीतर ही भीतर
भावनाओं के
अनगिनत बूँदों को
कितने धैर्य से समेटी
हुई होती है न
ये बेचैनियाँ ।
#श्वेता सिन्हा
१९ जनवरी २०२२