रश्मि पुंज निस्तेज है
मुखौटों का तेज है
सुन सको तो सुनो
चेहरा पढ़ने में असमर्थ
आँखों का मूक आर्तनाद।
झुलस रही है तिथियाँ
श्रद्धांजलि रीतियाँ
भीड़ की आड़ में
समय की लकीरों पर
जूतों के निशान है।
विलाप की विवेचना
शव होती संवेदना
अस्थिपंजर से चिपकी
अस्थियों का मौन
साँसों पर प्रश्न चिह्न है।
धूल-धूसरित,मलबे
छितराये हुए अवशेष
विघटन की प्रक्रिया में
हर खंडहर हड़प्पा नहीं
जीवित मनुष्यों का उत्खनन है।
अफ़रा तफ़री उत्सवी
मृत्यु शोक मज़हबी
निरपेक्ष राष्ट्र की
प्राणरक्षा के लिए
संप्रदायों का आत्महत्या करना
एकमात्र विकल्प है।
-श्वेता सिन्हा
१०फरवरी२०२२
good poem
ReplyDeleteवर्तमान परिपेक्ष्य की सटीक बात
ReplyDeleteनैराश्य के घोर तिमिर में क्रंदन-सा अहसास! अतिरंजित अवसाद भाव!
ReplyDeleteअफ़रा तफ़री उत्सवी
ReplyDeleteमृत्यु शोक मज़हबी
निरपेक्ष राष्ट्र की
प्राणरक्षा के लिए
संप्रदायों का आत्महत्या करना
एकमात्र विकल्प है।/////
मरती मानवीय संवेदनाओं की पड़ताल करती सार्थक रचना प्रिय श्वेता हार्दिक शुभकामनाएं।
अद्भुत!
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteगहरे, मन को झंझोड़ते भाव ...
ReplyDeleteकमाल की रचना है ...
हाहाकारी अभिव्यक्ति! आरियाँ चलाती हुई....
ReplyDeleteश्वेता जी,
ReplyDeleteकलम की पैनी धार शब्दों की नुकीली कटार
दो टूक कसैली टेढ़ी बात नश्तर-सी चुभ गई.
अभिनन्दन.नमस्ते.
उफ़्फ़,
ReplyDeleteदेखो ये विकल्प कब तलक स्किप किया जा सकता है इन ज़बरन-बने-बनाये-ज्ञानी महामूर्खों के द्वारा।
मानवता को अपने स्वार्थ की ख़ातिर तार तार किये जा रहे हैं रोज।
ये बेबाक सच्ची कविता हुई... वाह।
नई पोस्ट- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला
"झुलस रही है तिथियाँ
ReplyDeleteश्रद्धांजलि रीतियाँ
भीड़ की आड़ में
समय की लकीरों पर
जूतों के निशान है।"
बेहद खूबसूरत !!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
रश्मि पुंज निस्तेज है
ReplyDeleteमुखौटों का तेज है
सुन्दर सृजन
अधिकतर नकारात्मकता अवसाद का आधार
ReplyDeleteशुभकामनाओं के संग सस्नेहाशीष
मानवीय संवेदनाओं का विवेचन करती बहुत सुंदर रचना,स्वेता दी।
ReplyDeleteमानवीय संवेदनाएँ आखिर ढूँढती क्यों हो ? सौहार्द की भावना दम तोड़ चुकी है । धर्म मन में ज़हर भर रहा है कहीं भी कुछ बोला तो विरोध के लिए एक फौज खड़ी है । किसी के पक्ष ,विपक्ष में न राह कर बस निर्विकार भाव रखो । आज के समय में मौन सबसे बड़ा हथियार है । बाकी विकल्प जीवन से पलायन है ।
ReplyDeleteरचना तुम्हारे मन में उठने वाले उद्वेग को कह रही है । विचारणीय अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteवाह!श्वेता ,बहुत खुब !
ReplyDeleteधार दार तंज श्वेता !
ReplyDeleteसंप्रदायों की आत्महत्या, शानदार व्यंजना भावों का गहन आलोड़न ।
बहुत सुंदर सृजन।
बढियां बहुत खूब
ReplyDeleteविलाप की विवेचना
ReplyDeleteशव होती संवेदना
अस्थिपंजर से चिपकी
अस्थियों का मौन
साँसों पर प्रश्न चिह्न
समसामयिकी पर धारदार कटाक्ष
प्राणरक्षा के लिए
संप्रदायों का आत्महत्या करना
सटीक एवन अद्भुत
लाजवाब सृजन।
धूल-धूसरित,मलबे
ReplyDeleteछितराये हुए अवशेष
विघटन की प्रक्रिया में
हर खंडहर हड़प्पा नहीं
जीवित मनुष्यों का उत्खनन है।.. गूढ़ चिंतना का संप्रेषण । उत्कृष्ट रचना ।