रश्मि पुंज निस्तेज है
मुखौटों का तेज है
सुन सको तो सुनो
चेहरा पढ़ने में असमर्थ
आँखों का मूक आर्तनाद।
झुलस रही है तिथियाँ
श्रद्धांजलि रीतियाँ
भीड़ की आड़ में
समय की लकीरों पर
जूतों के निशान है।
विलाप की विवेचना
शव होती संवेदना
अस्थिपंजर से चिपकी
अस्थियों का मौन
साँसों पर प्रश्न चिह्न है।
धूल-धूसरित,मलबे
छितराये हुए अवशेष
विघटन की प्रक्रिया में
हर खंडहर हड़प्पा नहीं
जीवित मनुष्यों का उत्खनन है।
अफ़रा तफ़री उत्सवी
मृत्यु शोक मज़हबी
निरपेक्ष राष्ट्र की
प्राणरक्षा के लिए
संप्रदायों का आत्महत्या करना
एकमात्र विकल्प है।
-श्वेता सिन्हा
१०फरवरी२०२२