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Saturday, 16 June 2018

पापा


जग सरवर स्नेह की बूँदें
भर अंजुरी कैसे पी पाती
बिन " पापा " पीयूष घट  आप 
सरित लहर में खोती जाती
प्लावित तट पर बिना पात्र के
मैं प्यासी रह जाती!

निडर पंख फैलाकर उड़ती 
नभ के विस्तृत आँगन में
 टाँक आती मैं स्वप्न सुमन को
जीवन के फैले कानन में
आपकी शीतल छाँह बिना
मैं झुलस-झुलस मर जाती!

हरियाली जीवन की मेरे
झर-झर झरते निर्झर आप
तिमिर पंथ में दीप जलाते
सुनती पापा की पदचाप
बिना आपकी उंगली थामे
पथ भ्रांत पथिक बन जाती!

समयचक्र पर आपकी बातें,
स्मृतियाँ विह्वल कर जाती है
काँपती जीवन डोर खींच
प्रत्यंचा मृत्यु चढ़ाती है
संबल,साहस,संघर्ष का ज्ञान
आपकी सीख, मैं कभी भूल न पाती
मैं कभी भूल न पाती


--श्वेता सिन्हा

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...