असहमति और विरोध पर,
एकतरफ़ा फ़रमान ज़ारी है।
हलक़ से ख़ींच ज़ुबान काटेंगे,
बहुरुपियों के हाथ में आरी है।
कोई नहीं वंचित और पीड़ित!
सपनों की दुनिया ही प्यारी है
हुनर सीखो मुखौटा लगाने का
यही तो असली अय्यारी है।
उड़नखटोला हवा की सैर पर,
आतंकित बुद्धिजीवी सवारी है।
महाभारत इसे कैसे कहना?
कौरवों की कौरवों से मारा-मारी है।
जलाकर ख़ुद को रौशनी करे,
कहाँ अब ऐसी कोई चिंगारी है।
सिंहासन पाने की प्रतियोगिता में,
निर्लज्जता ही सब पर भारी है।
ईमानदारी-बेईमानी,सच-झूठ,
सब एक कीमत की तरकारी है।
कोई क्या खायें और किसे पूजे,
यही लोकतांत्रिक ज़िम्मेदारी है!
कितना भी खुरचो मिटती नहीं,
वैचारिकी फफूँँद बड़ी बीमारी है।
आज़ाद देश के गुलाम साथियों,
चमन में बहेलिये की पहरेदारी है।
कृष्ण और राम ले चुके अवतार,
अब क़लमकार ही शस्त्रधारी है।
रो-धोकर हालात नहीं बदलते,
उठो,अब जागृति की बारी है।
-श्वेता सिन्हा