साँझ के बाग में खिलने लगीं
काली गुलाब-सी रातें।
चाँदनी के वरक़ में लिपटी
मौन शरद की बातें।
काली गुलाब-सी रातें।
चाँदनी के वरक़ में लिपटी
मौन शरद की बातें।
चाँद का रंग छूटा
चढ़ी स्वप्नों पर कलई,
हवाओं की छुअन से
सिहरी शिउली की डलई,
सप्तपर्णी के गुच्छों पर झुके
बेसुध तारों की पाँतें।
साँझ के बाग में खिलने लगीं
काली गुलाब-सी रातें।
झुंड श्वेत बादलों के
निकले सैर पर उमगते,
इंद्रधनुषी स्वप्न रातभर
क्यारी में नींद की फुनगते,
पहाडों से उतरकर हवाएँ
करने लगी गुलाबी मुलाकातें।
साँझ के बाग में खिलने लगीं
काली गुलाब-सी रातें।
शरद है वैभव विलास
ज़रदोज़ी सौंदर्य का,
सुगंधित शीतल मंद बयार
रस,आनंद माधुर्य-सा,
प्रकृति करती न्योछावर
अंजुरी भर-भर सौगातें।
साँझ के बाग में खिलने लगीं
काली गुलाब-सी रातें।
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१२ अक्टूबर २०२२