Tuesday, 28 March 2017

ढलती शाम

बस थोड़ी देर और ये नज़ारा रहेगा
कुछ पल और धूप का किनारा रहेगा

हो जाएँगे आकाश के कोर सुनहरे लाल
परिंदों की खामोशी शाम का इशारा रहेगा

ढले सूरज की परछाई में चिराग रौशन होगे
दिनभर के इंतज़ार का हिसाब सारा रहेगा

मुट्ठियों में बंद कुछ ख्वाब थके से लौटेगे
शज़र की ओट लिये एक चाँद आवारा रहेगा

अँधेरों की वादियों में तन्हाईयाँ महकती है
सितारों की गाँव में चेहरा बस तुम्हारा रहेगा


         #श्वेता🍁



चूड़ियाँ

छुम छुम छन छन करती
कानों में मधुर रस घोलती
बहुत प्यारी लगी थी मुझको
पहली बार देखी जब मैंने
माँ की हाथों में लाल चूूड़ियाँ
टुकुर टुकुर ताकती मैं
सदा के लिए भा गयी
अबोध मन को लाल चूड़ियाँ
अपनी नन्ही कलाईयों में
कई बार पहनकर देखा था
माँ की उतारी हुई नयी पुरानी
खूब सारी काँच की चूड़ियाँ

वक्त के साथ समझ आयी बात
कलाई पर सजी सुंदर चुड़ियाँ
सिर्फ एक श्रृंगारभर नहीं है
नारीत्व का प्रतीक है ये
सुकोमल अस्तित्व को
परिभाषित करती हुई
खनकती काँच की चूड़ियाँ
जिस पुरुष को रिझाती है
सतरंगी चुड़ियों की खनक से
उसी के बल के सामने
निरीह का तमगा पहनाती
ये खनकती छनकती चूड़ियाँ

ब्याह के बाद सजने लगती है
सुहाग के नाम की चूड़ियाँ
चूड़ियों से बँध जाते है
साँसों के आजन्म बंधन
चुड़ियों की मर्यादा करवाती
एक दायित्व का एहसास
घरभर में खनकती है चुड़ियाँ
सबकी जरूरतों को पूरा करती
एक स्वप्निल संसार सजाती
रंग बिरंगी काँच  की चूड़ियाँ

चूड़ियों की परिधि में घूमती सी
अन्तहीन ख्वाहिशें और सपनें
टूटते,फीके पड़ते,नये गढ़ते
चुड़ियों की तरह ही रिश्ते भी
हँसकर रोकर सुख दुख झेलते
पर फिर भी जीते है सभी
एक नये स्वप्न की उम्मीद लिए
कलाईयों में सजती हुई
नयी काँच चूड़ियों की तरह
जीवन भी लुभाता है पल पल
जैसे खनकती काँच की चूड़ियाँ

               #श्वेता🍁

Sunday, 26 March 2017

तुम्हारा एहसास

खामोशियों में भी
दूरियों में भी
कुछ तड़पता है
कुछ कसकता है
वो न हो कही भी
फिर भी
हर साँस के साथ उनको
महसूस करते है
जैसे महसूस होती है हवा
अदृश्य प्राणवायु की तरह
जैसे महसूस करते है
अपने रब्ब के वजूद को
खुली बंद पलकों में
जैसे महसूस करते है
धड़कते हुए सीने को
वैसे ही चलती साँसों के
साथ उनको महसूस
कर सकते है
अपने एहसासों से छू
जाते है वो हर लम्हा
जैसे सूरज धरती को
चूमता है धूप बनकर
जैसे चाँद लिपटता है
रात से अपनी श्वेत
किरणों का दुशाला लिए
वैसे ही उनका एहसास
बादलों की तरह
मेरे जेहन के आसमां को घेरे
 हर पल हर घडी़
अपनी मुस्कान मे
तड़प मे बहते अश्कों मे
मचलते जज़्बातों मे
उनका एहसास
बस उनको महसूस करते है

        #श्वेता🍁
 

Friday, 24 March 2017

अब शाम होने को है

अब शाम होने को है
-----------------
आसमां के कोर गुलाबी होने लगे
अब शाम होने को है।
हवाओं ने झुरमुटों को सहलाया
अब शाम होने को है।

बढ़ने लगी आसमां की तन्हाईयाँ
फिजांं में खामोशियों का रंग चढ़ा
बेआवाज़ लौटने लगे परिंदें भी अब
थके सूरज की किरणें कहने लगी
अब शाम होने को है।

मन के मुंडेर पर आ बैठे खामोश ख्याल
जेहन में आहटों का शोर बढ़ने लगा
क्षितिज के स्याह बादल का टुकड़ा
नम पलकों में ठिकाना ढूँढने लगा
अब शाम होने को है।

दिनभर के शोरगुल से भागकर चुपचाप
शाम की तन्हाई में ख्वाबों के जीने चढ़कर
कसकर मेरे आगोश में लिपटने लगी
तुम हो कही मुझमें ही याद बताने लगी
अब शाम होने को है।

                #श्वेता🍁



तेरा ख्याल

घोलकर तेरे एहसास जेहन की वादियों में,
मुस्कुराती हूँ तेरे नाम के गुलाब खिलने पर।

तेरा ख्याल धड़कनों की ताल पर गूँजता है,
गुनगुनाते हो साँसों में जीवन रागिनी बनकर।

तन्हाई के आगोश में लिपटी रिमझिम यादें,
भींगो जाती है कोना कोना मन के आँगन का।

खामोशियों में फैलती तेरी बातों की खुशबू,
महक जाते है जज़्बात तुम्हें महसूस करके।

जबसे बाँधा है गिरह तेरे दिल से मेरे दिल ने,
कोई दूजा ख्वाब आता नहीं पलकों के दायरे में।


         #श्वेता🍁




Friday, 17 March 2017

एक नया सवेरा


नीले समन्दर में सूरज का डेरा
फिर हो गया है हसींं इक सवेरा

बुझ गया चंदा बुझ गये दीपक
रात तक रुक गया ख़्वाबों का फेरा

मोड़कर सिरहाने लिहाफोंं के नीचे
छुप गया साँझ तक तन्हाई का लुटेरा

पोटली उम्मीद की बाँध चले घर से
लेकर के लौटेगे खुशियों कटोरा

यही ज़िंंदगानी है दो चार दिन की
कुछ टूटते नये बनते सपनों का बसेरा।


        #श्वेता

Thursday, 16 March 2017

रात भर जागेगा कोई

चाँद को तकते आहें भरते भरते
आज फिर रातभर जागेगा कोई

ख्यालों में गुम चाँदनी में मचलते
दीदारे यार की दुआ माँगेगा कोई

जब जब छुएँगी ये पागल हवाएँ
समेट कर बाहों को बाँधेगा कोई

बादलों के साथ में उड़ते फिरते
सपनीली आँखों से ताकेगा कोई

जुगनू के परों पे रखकर ख्वाहिशें
उम्मीदों के धागों से बाँधेगा कोई

तन्हा सफर में न साथी मिलेगा
यादों को लिए राह साधेगा कोई

      #श्वेता

Wednesday, 15 March 2017

टूटा ख्वाब

तेरी निगाहों के नूर से दिल मेरा मगरूर था
भरम टूटा तो जाना ये दो पल का सुरूर था

परिंदा दिल का तेरी ख्वाहिश में मचलता रहा
नादां न समझ पाया कभी चाँद बहुत दूर था

एक ख्वाब मासूम सा पलकों से गिरकर टूट गया
अश्कों ने बताया ये बस मेरे दिल का फितूर था

चाहकर भी न मुस्कुरा सके वो  दर्द इतना दे गये
जज़्बात हम सम्हाल पाते इतना भी न शऊर था

दिल की हर दुआ में बस उनकी खुशी की चाह की
इतनी शिद्दत से इबादत कर ली यही मेरा कुसूर था

     #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...