श्वेता
Monday, 12 February 2024
मन
Monday, 1 January 2024
इस बरस
समय की अज्ञात यात्रा पर चलना चाहती हूँ।
Wednesday, 27 December 2023
यादों की पोटली से....
समेटकर नयी-पुरानी
नन्हीं-नन्हीं ख्वाहिशें,
कोमल अनछुए भाव,
पाक मासूम एहसास,
कपट के चुभते काँटे
विश्वास के चंद चिथड़़े,
अवहेलना की गूंज...
और कुछ रेशमी सतरंगी
तितलियों से उड़ते ख़्वाब,
बार-बार मन के फूलों
पर बैठने को आतुर,
कोमल, नाजुक
खुशबू में लिपटे हसीन लम्हे,
जिसे छूकर महकती है
दिल की बेरंग दीवारें,
जो कुछ भी मिला है
तुम्हारे साथ बिताये,
उन पलों को बाँधकर
वक़्त की चादर में
नम पलकों से छूकर,
दफ़्न कर दिया है
पत्थर के पिटारों में,
और मन के कोरे पन्नों
पर लिखी इबारत को
सजा दिया है भावहीन
खामोश संगमरमर के
स्पंदनविहीन महलों में,
जिसके ख़ाली दीवारों पर
चीख़ती हैं उदासियाँ,
चाँदनी रातों में चाँद की
परछाईयों में बिसूरते हैं
सिसकते हुए ज़ज्बात,
कुछ मौन संवेदनाएँ हैं
जिसमें तुम होकर भी
कहीं नहीं हो सकते हो,
ख़ामोश वक़्त ने बदल दिया
सारी यादों को मज़ार में,
बस कुछ फूल हैं इबादत के
नम दुआओं में पिरोये
जो हर दिन चढ़ाना नहीं भूलती
स्मृतियों के उस ताजमहल में।
-श्वेता
Thursday, 30 November 2023
सर्दी का एक दिन
Thursday, 14 September 2023
हिन्दी..
भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।
विश्वपटल पर गूँजें ऋचाएँ ससम्मान,
राष्ट्र की अंतस अभिलाषा है हिन्दी।
भाषा का जीवन समाज की बोली
प्रगति की होड़ में जल रही होली,
हिन्दी की ज़मीनी सच्चाई नहीं बदली
बाजारवाद के मेले में रिक्त रही झोली,
निरंतर अशुद्धियों के पत्थर से टूटती
आस जीर्णोद्धार की फिर भी न छूटती,
स्वयं को हर दिन देती दिलासा है हिन्दी।
भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।।
आतातायियों की थोपी थाती पोसते
दिवस विशेष पर अंग्रेजी को कोसते,
साहित्य तक सिमटा हिन्दी का अस्तित्व
भविष्य के लिए कितने नवांकुर हम रोपते?
न रहे अंग्रेजी शिक्षितों की पहचान
आओ सब बनाये अब हिन्दी को शान,
पीढ़ियों में जगे रोचकता और उत्सुकता,
अनंत का विस्तार जिज्ञासा है हिन्दी।
भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।।
साहित्यिक तान में मेघ मल्हार है हिन्दी
कहीं शब्द, कहीं भाव के कहार है हिन्दी,
संस्कृतियों के वाहक,सरल,सहज,सुबोध
सदियों से एकता का सूत्रधार है हिन्दी,
अभिव्यक्ति अपनी खोने से बचाना है
अलख हिन्दी की हर दिल में जगाना है,
प्राणवायु देश की राजभाषा है हिन्दी ।
भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।।
-श्वेता
Thursday, 24 August 2023
चाँद
जोर से सिहरा होगा चाँद,
मशीनी शोर , घरघराहट से
दो पल तो ठहरा होगा चाँद...।
मौन भंग से उद्वेलित तो होगा
रहस्यों के उजागर होने के भय से
भीतर ही भीतर आंदोलित तो होगा
बस्तियाँ बसे न बसे,आशिया सजे न सजे
देवत्व का मिथक टूटता देख
जाने क्या-क्या कह रहा होगा चाँद।
रूखी सतह के ठंडे, गर्म विश्लेषण में
आंकड़ों की किताब के हाशिये में
बस संख्याओं में पसरा होगा चाँद...।
Wednesday, 26 July 2023
संवेदना
एक के ऊपर लदे घटनाक्रमों से
भ्रमित पथराई स्मृतियों को
पीठ पर टाँगकर
बीहड़ रास्तों पर दौड़ती,मीलों हाँफती
लहुलुहान पीड़ा
चंद शब्दों के मरहम की उम्मीद लिए
संवेदनहीन नुकीले पत्थरों के
संकरे गलियारों में
असहाय सर पटक-पटककर
दम तोड़ देती है...।
जाने ये कौन सा दौर है
नरमुंडों के ढेर पर बैठी
रक्त की पगडंडियों पर चलकर
उन्माद में डूबी भीड़
काँच के मर्तबानों में बंद
तड़पती रंगीन गूँगी मछलियों की
की चीखों पर
कानों पर उंगली रखकर
तमाशबीन बनकर
ढोंग करती हैं
घड़ियाली संवेदना का
क्या सचमुच बुझ सकेगा
धधकता दावानल
कृत्रिम आँसुओं के छींटे से?
कोई क्यों नहीं समझता
रिमोट में बंद संवेदना से
नहीं मिट सकता
मन का अंर्तदाह...।
Thursday, 20 July 2023
धिक्कार है....
घृणित कृत्य ऐसी दीवानगी पर।
भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री,
स्तब्ध है अमानुषिक दरिंदगी पर ।
गौरवशाली देश हमारा
झूठ यह हर दिन दोहराता है।
नारी जननी पूजनीय देवी,
कह-कहकर बरगलाता है।
स्त्रियों का अस्तित्व रौंदा जाता है।
भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री
क्यों हैरान नहीं कोई हैवानगी पर?
बेटियों की अस्मिता सुरक्षित!
चहुँओर, भ्रमित जुमलों का शोर है।
स्वच्छंद बहेलिए प्रशिक्षित ,
धर्म जाति में बँटे, लोग आदमखोर हैं।
क्रांतिकारी,ओजस्वी भाषणवीर
जिनकी झोली में विषबुझे तुणीर,
क्यों मौन हैं सारे, बेपर्दगी पर?
व्यथित, दुखी और अपमानित
माँ भारती आँसुओं से सराबोर है।
अहिल्या,सीता,द्रौपदी या सुनीता
क्या बदला नारी के लिए दौर है ?
बेचैनियों की गिरह कौन खोले?
नपुंसकों की सभा है किससे बोले?
भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री
अकर्मण्यता क्यों?कैसी लाचारगी है?
-श्वेता
मैं से मोक्ष...बुद्ध
मैं नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता मेरा हृदयपरिवर...