Thursday, 6 July 2017

एक एक पल


आँख में थोड़ा पानी होठों पे चिंगारी रखो
ज़िदा रहने को ज़िदादिली बहुत सारी रखो

राह में मिलेगे रोड़े,पत्थर और काँटें भी बहुत
सामना कर हर बाधा का सफर  जारी रखो

कौन भला क्या छीन सकता है तुमसे तुम्हारा
खुद पर भरोसा रखकर मौत से यारी रखो

न बनाओ ईमान को हल्का सब उड़ा ही देगे
अपने कर्म पर सच्चाई का पत्थर भारी रखो

गुजरते लम्हे न लौटेगे कभी ये ध्यान रहे
एक एक पल को जीने की पूरी तैयारी रखो

संभव नहीं






राह के कंटकों से हार मानूँ मैं,संभव नहीं।
बिना लड़े जीवन भार मानूँ मैं,संभव नहीं।

हंसकर,रोकर ,ख्वाहिश बोकर,भूल गम
खुशियों पे अधिकार मानूँ मैं, संभव नहीं।

रात है तो ख्वाब है,पलकों पे नव संसार है
स्वप्न को जीवन आधार मानूँ मैं,संभव नहीं।

तुम न करो मैं न करूँ,ऐसे न होते नेह डोर
प्रेम को लेन देन व्यापार मानूँ मैं,संभव नहीं।

तम उजाला मन भरा,और कुछ है धरा नहीं
बुरा देख जग को बेकार मानूँ मैं,संभव नहीं।

         #श्वेता🍁

Tuesday, 4 July 2017

कभी तो नज़र डालिए

कभी तो नज़र डालिए अपने गिरेबान में
ज़माना ही क्यों रहता बस आपके ध्यान में

कुछ ख्वाब रोज गिरते है पलकों से टूटकर
फिर भोर को मिलते है हसरत की दुकान में

मरता नहीं कोई किसी से बिछड़े भी तो
यही बात तो खास है हम अदना इंसान में

दूरियों से मिटती नहीं गर एहसास सच्चे हो
दूर नज़र से होके रहे कोई दिल के मकान में

दावा न कीजिए साथ उम्रभर निभाने का
जाने वक्त क्या कह जाये चुपके से कान में

        #श्वेता🍁

सच के धरातल पर बरखा

भोर की अधखुली पलकों में अलसाये
ज्यों ही खिड़कियों के परदे सरकाये
एक नम का शीतल झोके ने दुलराया
झरोखे के बाहर फैले मनोरम दृश्य से
मन का फूल खिला जोर से मुस्काया
टिपटिपाती बारिश की मखमली बूँदे
झूमते पेड़ की धुली पत्तियों ने लुभाया
फुदककर नहाती किलकती चिड़िया
घटाओं ने नीले आसमां को छुपाया
भीगती प्रकृति की सुषमा में खोये
भाव विभोर मन लगे खूब हरषाया
हाथ में चाय की प्याली और अखबार
देखनेे शहर का क्या समाचार आया
ओह चार दिन से हो रही बारिश ने
गली मुहल्ले में है आफत बरसाया
कल रात ही एक घर की दीवार ढही
जिसके नीचे मजदूर ने बेटा गँवाया
मौसमी बीमारियों से भरे अस्पताल
दवाखानों में भी खूब मुनाफा कमाया
सफाई के अभाव में बजबजाती नाली ने
सारे  कचरे को सड़कों पर फैलाया
बदबू और सड़ांध से व्याकुल हुये लोग
चलती हवा में साँस लेना मुहाल हो आया
अभी तो नदियों के अधर भी न भींगे है
नाले का पानी घरों में घुसा कहर बरपाया
अखबार मोड़कर रखते हुये सोचने लगी
ऊफ्फ्फ इस बारिश ने कितनों को सताया
बोझिल हुआ मन दुर्दशा ज्ञात होते ही
है ये ख़ता किसकी रब ने सुधाजल बरसाया
कंकरीट बोता शहर विकास की राह पर
तालाब भरे नालियों पे ही आशियां लगाया
वज़ह चाहे कुछ भी हो सच बस इतना ही
बारिश ने शहर की खुशियों में ग्रहण लगाया
छत की खिड़कियों से दिखती है सुंदर बरखा
 सच की धरातल ने तो सारा खुमार उतराया

       #श्वेता🍁

Sunday, 2 July 2017

रात के तीसरे पहर

सुरमई रात के उदास चेहरे पे
कजरारे आसमां की आँखों से
टपकती है लड़ियाँ बूँदों की
झरोखे पे दस्तक देकर
जगाती है रात के तीसरे पहर
मिचमिचाती पीली रोशनी में
थिकरती बरखा घुँघरू सी
सुनसान राहों से लगे किनारों पे
हलचल मचाती है बहती नहर
पीपल में दुबके होगे परिंदें
कैसे रहते होगे तिनकों के घर में
खामोश दरख्तों के बाहों में सोये
अलसाये है या डरे किसको खबर
झोंका पवन का ले आया नमी
छू रहा जुल्फों को हौले हौले
चूमकर चेहरे को सिहराये है तन
पूछता हाल दिल का रह रह के
सिलवटें करवटों की बेचैनी में
बीते है  रात की तीसरी पहर

    #श्वेता🍁

चुप है

बड़ी खामोशी है फैली ये हवाएँ चुप है
तेरे दर होके लौटी आज सदाएँ चुप है

तक रहे राह तेरी अब सुबह से शाम हुई
तेरीे आहट नहीं मिलती ये दिशाएँ चुप है

भरे है बादल ये आसमां बोझिल सा लगे
बरस भी जाती नही क्यों ये घटाएँ चुप है

हरे भरे गुलिस्तां में छायी है वीरानी कैसी
मुस्कुराने की वजह तुम हो फिजा़एँ चुप है

सिवा तुम्हारे न कुछ और रब से चाहा है
बिखरी है आरजू सारी ये दुआएँ चुप है

    #श्वेता🍁

Saturday, 1 July 2017

मैं तुमसे मिलने आऊँगी

हरपल मुझको महसूस करो
मैं तुमसे मिलने आऊँगी

भोर लाली के रंग चुरा
पलकों पे तेरे सजाऊँगी
तुम मीठे से मुस्काओगे
प्रथम रश्मि की गरमाहट
मैं उजास भर जाऊँगी

पंखुड़ियाँ कोमल नाजुक
अपने हाथों में भर भर के
मैं तुमसे मिलने आऊँगी
मलकर महक गुलाब की
चुन सारे काँटे ले जाऊँगी

न कुम्हलाओ  धूप मे तुम
मैं आँचल सा बिछ जाऊँगी
बनकर लहराती इक बदरी
बारिश रिमझिम रिमझिम
तन को शीतल कर जाऊँगी

चाँद हाथ में लेकर रात को
चुनरी झिलमिल तारों की
गलियारें में आसमां के
बिन बोले खामोशी से
बस तेरी मैं हो जाऊँगी

मैं न समझूँ कुछ न समझूँ
क्या जाने मैं क्या पाऊँगी
तुमको ही दिल ने जाना है
इक डोर नेह के बाँध के मैं
सारे एहसास जगाऊँगी

तेरे मौन का कोई गीत बनूँ
तेरी तन्हाई में चुपके से फिर
मैं तुमसे मिलने आऊँगी


#श्वेता🍁



Friday, 30 June 2017

बचपन

बचपन का ज़माना बहुत याद आता है
लौटके न आये वो पल आँखों नहीं जाता है

न दुनिया की फिक्र न ग़म का कहीं जिक्र
यादों में अल्हड़ नादानी रह रहके सताता है

बेवज़ह खिलखिलाना बेबाक नाच गाना
मासूम मुस्कान को वक्त तड़प के रह जाता है

परियों की कहानी सुनाती थी दादी नानी
माँ के आंचल का बिछौना नहीं मिल पाता है

हर बात पे झगड़ना पल भर में मान जाना
मेरे दोस्तो का याराना बहुत याद आता है

माटी में लोट जाना बारिश मे खिलखिलाना
धूप दोपहरी के ठहकों से मन भर आता है

अनगिनत याद में लिपटे असंख्य हीरे मोती
मुझे अनमोल ख़जाना बहुत याद आता है

क्यूँ बड़े हो गये दुनिया की भीड़ में खो गये
मुखौटे लगे मुखड़े कोई पहचान नहीं पाता है

लाख मशरूफ रहे जरूरत की आपाधापी में
बचपना वो निश्छलता दिल भूल नहीं पाता है

      #श्वेता🍁



मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...