Thursday, 17 March 2022

रंग


 भोर का रंग सुनहरा,
साँझ का रंग रतनारी,
रात का रंग जामुनी लगता है...।

हया का रंग गुलाबी,
प्रेम का रंग लाल,
हँसी का रंग हरा लगता है...।

कल्पनाओं का रंग नीला,
मन का रंग श्वेत,
उन्माद का रंग नारंगी लगता है..,।

क्रोध का रंग गहरा,
लोभ का रंग धूसर,
जिद का रंग बदरंग लगता है...।

उदासी का कोई रंग नहीं
शायद  उदासी 
सारे रंग सोख लेती है,
और आँसू ...
सारे रंगों को फीका कर देते हैं।

जीवन में समय के अनुरूप
एक से दूसरे पल में 
परिवर्तित होते रंग प्रमाण है 
जीवन की क्रियाशीलता का...।

उत्सव का इंद्रधनुषी रंग 
हाइलाइट कर देता है जीवन के
कुछ लटों को
खुशियों के रंगों से ...।

#श्वेता सिन्हा
१७ मार्च २०२२

Wednesday, 9 March 2022

क्यों अधिकार नहीं...



समय के माथे पर
पड़ी झुर्रियाँ 
गहरी हो रही हैं।
अपनी साँसों का
स्पष्ट शोर सुन पाना
जीवन-यात्रा में एकाकीपन के
 बोध का सूचक है।

इच्छाओं की
चारदीवारी पर उड़ रहे हैं जो
श्वेत कपोत
मुक्ति की प्रार्थनाओं के
संदेशवाहक नहीं,
उम्र की पीठ पर लदी
अतृप्ति की बोरियों के
पहरेदार हैं।

मन के पाताल कूप में गूँजती 
कराहों की प्रतिध्वनियाँ
सृष्टि के जन्मदाता से 
चाहती है पूछना
क्यों अधिकार नहीं मुझे
चुन सकूँ
किस रूप में जन्म लूँ ?

-श्वेता सिन्हा

Thursday, 24 February 2022

युद्ध...


युद्ध की बेचैन करती
तस्वीरों को साझा करते
न्यूज चैनल,
समाचारों को पढ़ते हुए
उत्तेजना से भरे हुए
 सूत्रधार
 शांति-अशांति की 
 भविष्यवाणी,
समझौता के अटकलों
और सरगर्मियों से भरी बैठकें
विशेषज्ञों के कयास
उजड़ी आबादी 
बारूद,बम,टैंकरों, हेलीकॉप्टरों की
गगन भेदी गड़गड़ाहटों वाले
वीडियो,रक्तरंजित देह,बौखलायी 
बेबस भीड़,रोते-बिलखते बच्चे 
किसी चित्रपट की रोमांचक
तस्वीरें नहीं
महज एक अशांति का
समाचार नहीं
तानाशाह की निरंकुशता, 
विनाश के समक्ष दर्शक बने
बाहुबलियों की नपुंसकता,
यह विश्व के 
नन्हे से हिस्से में उठती
चूल्हे की चिंगारी नही 
आधिपत्य स्थापित 
करने की ज़िद में
धरती की कोख को
बारूद से भरकर
पीढ़ियों को बंजर करने की
विस्फोटक भूमिका है।


आज जब फिर से...
स्वार्थ की गाड़ी में 
जोते जा रहे सैनिक...
अनायास ही बदलने लगा मौसम
माँ की आँखों से
बहने लगे खून,
प्रेमिकाएँ असमय बुढ़ा गयी
खिलखिलाते,खेलते बच्चे 
भय से चीखना भूल गये,
फूल टूटकर छितरा गये
तितलियाँ घात से गिर पड़ीं
आसमान और धरती 
धुआँ-धुआँ हो गये,
उजड़ी बस्तियों की तस्वीरों के
भीतर मरती सभ्यता 
इतिहास में दर्ज़ 
शांति के सभी संदेशों को
झुठला रही है..
कल्पनातीत पीड़ा से
 भावनाशून्य मनुष्य की आँखें
चौंधिया गयी हैं
 जीवन के सारे रंग 
 लील लेता है 
 युद्ध...। 

-श्वेता सिन्हा
२४ फरवरी २०२२


Sunday, 13 February 2022

प्रेम.....



बनते-बिगड़ते,ठिठकते-बहकते
तुम्हारे मन के अनेक अस्थिर,
जटिल भाव के बीच सबसे कोमल
स्थायी एहसास बनकर निरंतर 
तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ मैं...

पवित्र नदी,कुएँ या झील में
तुम्हारे द्वारा उछाले गये
प्रार्थनाओं का सिक्का बनकर
 डूब जाना चाहती हूँ मैं
प्रेम के गहरे समुंदर में,
किसी मंदिर में जोड़ी गयी हथेलियों 
के मध्य,बंद पलकों की झिर्रियों
से झाँकना चाहती हूँ मैं,
दीये की लौ की तरह
तुम्हारे पथ में
जलना चाहती हूँ मैं,
रूनझुनी घंटियों की स्वरलहरी सी
 गूँजना चाहती हूँ मैं
तुम्हारे अंर्तमन में...
किसी दरगाह,मज़ार पर,
किसी पावन वृक्ष के ईर्दगिर्द 
मन्नत का पवित्र धागा बनकर
लिपटना चाहती हूँ
तुम्हारे मन की अंतिम इच्छा बनकर।

फूलों पर मचलती तितली देखते हुए
बारिश के झोंकों के साथ,
हवाओं की अठखेलियों के साथ,
नीरस शाम की चाय के साथ,
शाम ढले सबसे चमकीला तारा ढूँढ़ते हुए,
जुगनू को मुग्ध निहारते हुए,
तुम्हारे लैपटॉप की स्क्रीन पर,
फाइलों के जरूरी कागज़ों के बीच
अनायास ही मिल गयी
किसी विशेष स्मृति चिह्न की तरह
छू जाना चाहती हूँ तुम्हारे होंठों को
बनकर मीठी-सी मुस्कान,
किसी इत्र की खुशबू की तरह
करना चाहती हूँ तुम्हें भाव विभोर।

सुनो न...
मैं रहना चाहती हूँ
तुम्हारे जीवन में
बनकर शाश्वत प्रेम
तुम्हारे हृदय के स्पंदन में,
आँखों की स्वप्निल छवि में,
होंठों से उच्चरित मंत्र की तरह
तुम्हारे द्वारा पढ़ी या लिखी गयी
 कहानी,कविताओं, प्रेम पत्रों की
 एकमात्र नायिका बनकर...।

 -------
 -श्वेता सिन्हा
 १३ फरवरी २०२२

Thursday, 10 February 2022

एकमात्र विकल्प


रश्मि पुंज निस्तेज है
 मुखौटों का तेज है
 सुन सको तो सुनो
 चेहरा पढ़ने में असमर्थ
 आँखों का मूक आर्तनाद।


झुलस रही है तिथियाँ
श्रद्धांजलि  रीतियाँ
भीड़ की आड़ में
समय की लकीरों पर
जूतों के निशान है।


विलाप की विवेचना
शव होती संवेदना
अस्थिपंजर से चिपकी
अस्थियों का मौन
साँसों पर प्रश्न चिह्न है।


धूल-धूसरित,मलबे 
छितराये हुए अवशेष 
विघटन की प्रक्रिया में
हर खंडहर हड़प्पा नहीं 
जीवित मनुष्यों का उत्खनन है।

अफ़रा तफ़री उत्सवी
मृत्यु शोक मज़हबी 
निरपेक्ष राष्ट्र की
प्राणरक्षा के लिए
संप्रदायों का आत्महत्या करना 
एकमात्र विकल्प है।


-श्वेता सिन्हा
१०फरवरी२०२२


 

Tuesday, 25 January 2022

भविष्य के बच्चे


1949 में जन्मे बच्चों की
गीली स्मृतियों में उकेरे गये
कच्ची मिट्टी, चाभी वाले,
डोरी वाले कुछ मनोरंजक खिलौने,
फूल,पेड,तितलियाँ,
चिडियों,घोंसले,परियाँ,
सूरज को दादा
और चाँद को मामा कहने वाली
मासूम कविताएँ
स्कूल,चौराहे, गली-कूचों में
शान से फहरते तिरंगे और
स्वतंत्रता के लिए बलिदान हुए
 शौर्यवीरों की
गौरवशाली भावपूर्ण 
कहानियाँ बोयी गयी थी।
सौहार्दपूर्ण वातावरण में
जाति-धर्म से परे
आँख में भरे गये थे
मनुष्यता की गुणवत्ता वाले
राष्ट्रहित सर्वोपरि का मंत्र जापते
सुखी,संपन्न आह्लाद से लबालब
मूल्यवान भविष्य के स्वप्न...।

धीरे-धीरे बचपन से
कच्ची मिट्टी सूख गयी
चाभी की जगह
बैटरी वाली कार,
खतरनाक बंदूकों ने ले लिए,
चिडियों,तितलियों,फूल और
पेडों को तस्वीरों में कैद कर 
चाँद और सूरज की
रोशनी में लटकाकर
कविताओं से निकालकर
वैज्ञानिक परीक्षण के लिए
भेज दिया गया,
आज़ादी का महत्व,
बलिदानों की कहानियाँ
और बलिदानियों का
आलोचनात्मक विश्लेषण,
महत्वपूर्ण दिवस और तिथियाँ
सामान्य ज्ञान की किताबों तक
सीमित होना ,झंडोत्तोलन का
छुट्टी का एक दिन की तरह
औपचारिक हो जाना
चिंताजनक है।

किंतु
सोचती हूँ...
स्वकेंद्रित जीवन 
स्वनिर्माण सर्वोपरि का
जन्मघुट्टी पीते बचपने के ढेर से अलग
कुछ बच्चों का
चीजों को यथावत स्वीकार न करना,
विषयों का तार्किक आकलन करना
आविष्कारक पीढ़ी का
पेंसिल की नोंक रगड़कर
दुनिया के नक्शे पर लिखना
ग्लोबल गाँव,
जाति-धर्म को ख़ारिज करना,
 सामाजिक आडंबरों  
पर व्यवहारिक प्रश्न पूछना
मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील होना
छब्बीस जनवरी के परेड का
लाइव टेलीकास्ट देखते हुए
राष्ट्र गीत गुनगुनाते हुए,सलामी देते हुए कहना
"मैं भी सैनिक बनना चाहता हूँ"
भविष्य के बदलाव का शुभ संकेत हैं
देश के लिए सम्मान पनपना
भावनाओं का जन्मना...,
कोई फर्क नहीं पड़ता कि
खुरदरी दरी या आरामदायक बिस्तर है
आँखों के सपने कंम्प्यूटराइज़्ड ही सही
पर अपने देश का तिरंगा लिए
हँसते-मुस्कुराते 2022 के बच्चे
उम्मीद की संजीवनी बूटी से लगते हैं
जो विश्वास दिलाते है कि  
एक दिन अवश्य करेंगे
व्याधि मुक्त राष्ट्र का निर्माण।

#श्वेता सिन्हा
२५ जनवरी २०२२

Wednesday, 19 January 2022

बेचैनियाँ

हर अभिव्यक्ति के बाद
बची हुई अभिव्यक्ति में
भावों की गहराई में छुपी
अव्यक्तता की अनुभूति
सदैव जताती है
अभिव्यक्ति के
अधूरेपन के समुच्चय को
अपूर्ण शब्दों के समास को
जिन्हें पूर्ण करने की चेष्टा में
अक्सर ख़ाली पन्ने पर
फडफड़़ाती हैं बेचैनियाँ...।

बेचैनियों को 
छुपाने के लिए
कविताओं का आसामान चुना
सोचती रही
शब्दों से नज़दीकियाँ बढ़ाकर
फैलाकर अपने भावों के पंख 
सुकून पा रही हूँ...
पर जाने क्यों
उम्र के साथ
बढ़ती ही जा रही हैं
बेचैनियाँ।

पसीजे मन की धुन पर
चटखती उंगलियाँ,
कल्पनाओं के
स्क्रीन ऑन-ऑफ
स्क्रॉल करती..., 
एक मनचाहा
संदेश देखने के लिए
विकल आँखें,
नींद का स्वांग भरती
करवटें,
कोलाहलों से तटस्थ
बस एक परिचित आहट 
टोहते कान,
सचमुच...
भीतर ही भीतर
भावनाओं के
अनगिनत बूँदों को
कितने धैर्य से समेटी 
हुई होती है न
ये बेचैनियाँ ।

#श्वेता सिन्हा
१९ जनवरी २०२२



 

Wednesday, 12 January 2022

आह्वान.. युवा


गर जीना है स्वाभिमान से
मनोबल अपना विशाल करो
न मौन धरो ओ तेजपुंज
अब गरज उठो हुंकार भरो।

बाधाओं से घबराना कैसा?
बिन लड़े ही मर जाना कैसा?
तुम मोम नहीं फौलाद बनो
जो भस्म करे वो आग बनो
अपने अधिकारों की रक्षा का
उद्धोष करो प्रतिकार करो।

विचार नभ पर कल्पनाओं के
इंद्रधनुष टाँकना ही पर्याप्त नहीं,
सत्ता,संपदा,धर्म-जाति अस्वीकारो
मानवीय मूल्य सर्वव्याप्त करो।

माना कि बेड़ी में जकड़े हो
तुम नीति-नियम को पकड़े हो,
तुम्हें पत्थर में दूब जमाना है
बंजर में हरियाली लाना है,
आँखें खोलो अब जागो तुम
सब देखे स्वप्न साकार करो।

तुम रचयिता स्वस्थ समाज के
खोलो पिंजरे, परवाज़ दो,
दावानल बनो न विनाश करो
बन दीप जलो और तमस हरो।

आवाहन का तुम गान बनो
बाजू में प्रचंड तूफान भरो
हे युवा
! हो तुम कर्मवीर
तरकश में कस लो शौर्य धीर
अब लक्ष्य भेदना ही होगा
योद्धा हो आर या पार करो

-श्वेता सिन्हा
१२ जनवरी २०२२


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...